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Friday, 20 September 2013

नवरुणा कांड: एक साल का इंतज़ार और 'जाँच पर आँच' (बीबीसी की विशेष रिपोर्ट )


माँ को एक साल से बेटी का इंतज़ार है

 शुक्रवार, 20 सितंबर, 2013 को 18:33 IST
 बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर की रहने वाली नवरुणा एक साल पहले अपने घर से ग़ायब हो गई थी. उसका अभी तक कोई अता-पता नहीं चल पाया है. सुनिए बीबीसी सवाददाता पंकज प्रियदर्शी की विशेष रिपोर्ट.

http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2013/09/130920_navruna_report_pp.shtml

नवरुणा कांड: एक साल का इंतज़ार और 'जाँच पर आँच'

 गुरुवार, 19 सितंबर, 2013 को 16:56 IST तक के समाचार
नवरुणा
एक साल हो गए नवरुणा को ग़ायब हुए
इंतज़ार, इंतज़ार और बस इंतज़ार. एक साल से माता-पिता की आँखें अपनी बिटिया को देखने का सपना लिए पथरा सी गई हैं. जैसे ही घर का दरवाज़ा खटकता है, लगता है कोई उनके लिए शुभ समाचार लेकर आया है. लेकिन हर बार उन्हें निराशा ही हाथ लगती है.
एक साल हो गए हैं उनकी बेटी क्लिक करेंनवरुणा को घर से लापता हुए. मुजफ़्फ़रपुर के रहने वाले अतुल्य चक्रवर्ती और मोइत्री चक्रवर्ती की बेटी क्लिक करेंनवरुणा पिछले साल 18 सितंबर की मध्य रात्रि से अपने घर से ग़ायब है. अतुल्य चक्रवर्ती का आरोप है कि उनकी बेटी का अपहरण किया गया है.
एक साल से पुलिस, प्रशासन और नेताओं के घर के चक्कर लगा-लगाकर दोनों पति-पत्नी परेशान हैं, लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला. मुज़फ़्फ़रपुर पुलिस के बाद मामला क्लिक करेंबिहार पुलिस की अपराध अनुसंधान शाखा (सीआईडी) को सौंपा गया. लेकिन सीआईडी अधिकारियों के हाथ भी कुछ नहीं आया.
नवरुणा के परिजनों ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, गृह मंत्रालय, प्रधानमंत्री कार्यालय और फिर सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया. लेकिन अभी तक उनकी बेटी का कुछ पता नहीं चल पाया है.
प्रधानमंत्री कार्यालय की पहल पर ये मामला सीबीआई को सौंपने की तैयारी चल रही है. बिहार पुलिस ने भी ये अनुरोध भेज दिया है. लेकिन फ़ाइल पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के दस्तख़त होने अभी बाक़ी हैं.

'कोई नहीं समझता दुख'

"एक साल भगवान भरोसे गुज़रा है. मैं दिल का मरीज़ हूँ और मुझे नहीं पता कि मैं कैसे अभी तक ज़िंदा हूँ. मुझे तो लगता है कि कोई ईश्वरीय शक्ति है, जो मुझे इतने समय तक ज़िंदा रखे हुए हैं. पुलिस तंत्र काम नहीं कर रहा है, हम लोगों का दुख समझने वाला कोई नहीं है"
अतुल्य चक्रवर्ती, नवरुणा के पिता
ये एक साल उन माता-पिता के लिए कैसे कटे होंगे. बीबीसी से बातचीत में नवरुणा के पिता अतुल्य चक्रवर्ती कहते हैं, "एक साल भगवान भरोसे गुज़रा है. मैं दिल का मरीज़ हूँ और मुझे नहीं पता कि मैं कैसे अभी तक ज़िंदा हूँ. मुझे तो लगता है कि कोई ईश्वरीय शक्ति है, जो मुझे इतने समय तक ज़िंदा रखे हुए हैं. पुलिस तंत्र काम नहीं कर रहा है, हम लोगों का दुख समझने वाला कोई नहीं है."
हालाँकि सीआईडी के अतिरिक्त महानिदेशक अभय उपाध्याय का कहना है कि उनकी टीम ने पूरी गंभीरता के साथ मामले की जाँच की है, लेकिन नतीजा नहीं निकल पाया है.
नवरुणा की माँ मोइत्री चक्रवर्ती का तो रो-रोकर बुरा हाल है. जब मैंने उन्हें फ़ोन किया, तो सुबकते हुए उन्होंने कहा, "आप भी दुआ कीजिए कि मेरी बेटी लौट आए. हम रात-दिन छटपटाते रहते हैं. पता नहीं हमें न्याय कब मिलेगा."
प्रशासन, पुलिस और सरकार को लेकर दोनों का ग़ुस्सा खुलकर सामने आ गया. दोनों एक साल से चल रही जाँच से संतुष्ट नहीं. अतुल्य चक्रवर्ती का तो आरोप है कि पुलिस उल्टे उन्हें ही परेशान कर रही है. वो कहते हैं, "हमारे दर्द को बिहार का प्रशासन कोई मान्यता नहीं देता. और तो और अभी तक जो जाँच हुई है, उसमें हम लोगों को ही तंग किया गया है. हम लोगों को ही प्रताड़ित किया गया मानों हमने एफ़आईआर करके कोई ग़लती की है."
उन्होंने बताया कि चार महीने ये मामला पुलिस के पास था और अब ये मामला सीआईडी के पास है. लेकिन मामले में कोई प्रगति नहीं हुई है. पुलिस ने इस मामले में तीन लोगों को गिरफ़्तार किया था. लेकिन पटना हाई कोर्ट से एक को ज़मानत मिल गई है.
नवरुणा के लापता होने के क़रीब दो महीने बाद पुलिस को उनके घर के पास से नरकंकाल मिला था. पुलिस ने इस बाबत नवरुणा के माँ-पिता के डीएनए टेस्ट की मांग की, लेकिन वे इसके लिए नहीं माने.
बीबीसी के साथ बातचीत में अतुल्य चक्रवर्ती ने कहा कि वे नहीं मानते कि वो कंकाल उनकी बेटी का था, क्योंकि पुलिस ने इस बारे में बार-बार अपना बयान बदला है. उन्होंने कहा कि पहले हड्डी का डीएनए टेस्ट हो, उसके बाद वे अपना ख़ून देंगे.

'मेरे पास हर जानकारी नहीं'

अतुल्य चक्रवर्ती
जब मैंने इस बाबत बिहार पुलिस महानिदेशक अभयानंद से इस केस की प्रगति के बारे में संपर्क किया, तो टका सा जवाब मिला. अभयानंद बोले, "हर समय मैं हर केस की जानकारी लेकर नहीं बैठता हूँ. आप एडीजी सीआईडी से बात करिए. केस की जानकारी मेरे दफ़्तर में नहीं रहती है."
"हर समय मैं हर केस की जानकारी लेकर नहीं बैठता हूँ. आप एडीजी सीआईडी से बात करिए. केस की जानकारी मेरे दफ़्तर में नहीं रहती है"
अभयानंद, बिहार पुलिस महानिदेशक
नवरुणा के पिता अतुल्य चक्रवर्ती की मानें, तो उन्होंने कई बार बिहार पुलिस महानिदेशक से संपर्क किया है, लेकिन हर बार उन्हें निराशा ही हाथ लगी है और एक साल बाद बिहार पुलिस के आक़ा का ये कहना कि उन्हें नहीं पता, ये ज़ाहिर करने के लिए काफ़ी है कि पुलिस इस मामले को लेकर कितनी संजीदा है.
अभयानंद ने इतना ज़रूर मुझे बताया कि पीड़ित के परिवार ने सीबीआई जाँच का अनुरोध किया था. सरकार शायद इसके लिए तैयार हो गई है. पहले सीआईडी जाँच कर रही थी, लेकिन उन लोगों ने सीबीआई जाँच की मांग की. तो इसकी सिफ़ारिश भेज दी गई है.
पुलिस, सीआईडी और अदालत के बीच लटके इस मामले में पुलिस नवरुणा के परिजनों को ही ज़िम्मेदार ठहरा रही है. सीआईडी के एडीजी अभय उपाध्याय कहते हैं, "सब बिंदुओं पर जाँच हुई है. लेकिन हम किसी नतीजे पर नहीं पहुँचे हैं. क्योंकि इनके बयान हर बार बदले हैं. जो रिकॉर्ड पर हैं."
लेकिन जब मैंने ये सवाल किया कि एक साल में आपकी जाँच का कोई नतीजा नहीं निकला, तो कोई आप पर भरोसा क्यों करे, इस पर उनका कहना था, "एक साल क्यों, छह महीने क्यों हुआ, छह दिन क्यों हुआ, छह घंटे क्यों हुआ. माता-पिता के पास से अगर बच्चा नहीं दिखाई दे. तो उस पीड़ा से हम इनकार कहाँ कर रहे हैं. उनकी बेचैनी जितनी है, हमें भी उतनी ही बेचैनी है. लेकिन हमारी ओर से कोई कोताही नहीं हुई है. हरसंभव प्रयास किया गया है."

हताशा

नवरुणा की वापसी के लिए प्रदर्शन
दूसरी ओर नवरुणा के माता-पिता इतने हताश हैं कि बात करते समय बार-बार उनका गला रूँध जाता है. अतुल्य चक्रवर्ती कहते हैं, "सीआईडी ख़ानापूर्ति कर रही है. मुझे कुछ पता नहीं है कि सीआईडी के कौन अधिकारी जाँच कर रहे हैं. मैं अंधकार में हूँ. हम लोग प्रशासन से कैसे लड़ेंगे, ये सोचकर हमारी आत्मा कलप जाती है. क्या मेरी बच्ची लौटेगी, ये सोचकर ही मेरी आत्मा तड़प उठती है."
दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र अभिषेक रंजन ने भी नवरुणा की सकुशल वापसी के लिए क्लिक करेंअभियान चलाया हुआ है. एक साल के दौरान कई बार उन्होंने दिल्ली में प्रदर्शन किया है, अधिकारियों और मंत्रियों के घर के चक्कर लगाए हैं और सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दाख़िल की है.
फ़ेसबुक पर सेव नवरुणा के नाम से वे अभियान चला रहे हैं, जिस पर उन्हें लोगों का अच्छा समर्थन मिला है. उन्हें अमरीका, अरब देशों और ब्रिटेन तक से लोग संपर्क करके नवरुणा के बारे में जानकारी मांगते हैं.
"आप भी दुआ कीजिए कि मेरी बेटी लौट आए. हम रात-दिन छटपटाते रहते हैं. पता नहीं हमें न्याय कब मिलेगा"
मोइत्री चक्रवर्ती, नवरुणा की माँ
लेकिन वे भी निराश हैं. बीबीसी के साथ बातचीत में उन्होंने कहा, "मुझे डर लग रहा है. नवरुणा तो अभी तक नहीं मिली, क्या नवरुणा को न्याय भी नहीं मिलेगा? लेकिन मुझे भारत की संवैधानिक संस्था पर भरोसा है, उनके माँ-बाप का भरोसा है कि उनकी बेटी ज़रूर आएगी, तो मुझे भी भरोसा है."
उनका कहना है कि उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाख़िल की है, लेकिन वहाँ से लगातार तारीख़ें मिली रही हैं. अभिषेक का कहना है कि पीएमओ ने सीबीआई जाँच की सिफ़ारिश कर दी है और अगर बिहार सरकार तुरंत इसे सीबीआई को सौंप दे, तो शायद इसका नतीजा निकल पाए.
नवरुणा के माता-पिता को अब भी भरोसा है कि उनकी बेटी ज़रूर आएगी. नवरुणा की माँ कहती हैं - मुझे ऐसा लगता है कि जैसे मेरी बच्ची बोल रही है कि माँ मैं आऊँगी. उनके माता-पिता की आस कब पूरी होगी, क्या जाँच में जल्द कुछ निकल पाएगा, ये ऐसे सवाल हैं, जिनका जवाब फ़िलहाल किसी के पास नहीं.

Monday, 16 September 2013

सेव नवरूणा मुहीम को आपकी मदद की जरुरत है....क्या आप हमारी छोटी सी मदद करेंगे????

मित्रों,

पिछले 18 सितंबर, 2012 की रात से अपहृत नवरूणा का अबतक कुछ पता नही लग पाया है. बिहार के मुजफ्फरपुर शहर के बीचोबीच स्थित अपने घर से उसे उठा लिया गया था, लेकिन पुलिस या सरकार उसे अबतक खोज नही पाई है, न ही उसकी कोई मंशा दिखती है. आगामी 19 सितंबर, 2013 को नवरूणा अपहरण के एक वर्ष हो जाएंगे! इन एक वर्ष में नवरूणा के परिजन, शुभचिंतक खूब चीखे-चिल्लाएं, सरकार से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक गए, लेकिन कुछ ठोस अबतक नही हुआ है. पीएमओ की सक्रियता से मामला सीबीआई को सौंपने की बात कही गई थी, जिसे मुख्यमंत्री ने बुझे मन से मान भी लिया था! लेकिन इसपर तुरंत कोई फैसला अबतक नही लिया गया है. नवरूणा मामले को साधारण और सुस्ती से खत्म करने की कोशिश लगातार जारी है.

इन परिस्थितियों में आगामी 19 सितंबर, 2013 को दिल्ली, पटना, इलाहाबाद, मुजफ्फरपुर सहित कई शहरों में रहने वाले मित्रों ने कुछ सांकेतिक विरोध जताने का फैसला लिया है. हम अपने अपने स्थानों पर जमा होंगे, कैंडल मार्च निकालेंगे और नवरूणा व न्याय की फिर से फ़रियाद लगाएंगे! आपसे भी अपेक्षा है कि एक बेटी के लिए आप भी अपने तरीकें से आवाज़ उठाए!  

कई मित्र को लग सकता है कि इसमें काफी झंझट है और खर्च होगा! हम आपको पूरी इमानदारी से बताना चाहते है कि सेव नवरूणा मुहीम पैसों से नही, जूनून, लगातार कोशिश, हिम्मत की अनमोल ताकत और एक बेटी को न्याय दिलाने से जुड़ी जज्बातों की उर्जा से लड़ी जा रही है. नवरूणा के लिए आवाज़ उठाने के लिए किसी भारी भरकम व्यवस्था करने या अपने पॉकेट से खर्च करने की कोई जरुरत नही है. बस आप थोड़ा वक़्त निकाले, आपकी विरोध दर्ज होंगी! मुहीम को समर्थन मिलेगी!

आग्रह है, आप देश के किसी भी हिस्से में हों, अपने 5-10 मित्रों के साथ एकजुट होकर, अपना महत्वपूर्ण 5-10 मिनट का समय अपहरण के एक वर्ष होने के दिन(19 सितंबर, 2013) नवरूणा के लिए जरुर निकालें! 19 सितंबर, 2013 को खुद और अपने सभी मित्रों से आग्रह करें कि वे पीएमओ (http://pmindia.nic.in/feedback.php)  और बिहार सरकार(http://gov.bih.nic.in/Write2CM.asp) को दिए गए लिंक पर जल्दी से जल्दी नवरूणा केस सीबीआई को निष्पक्ष जाँच के लिए सौंपने का आग्रह करें! साथ ही एक मेल जल्द सुनवाई के लिए आप सुप्रीम कोर्ट को भी supremecourt@nic.in पर भेज सकते है!

दिल्ली में रहनेवाले मित्र 19 सितंबर, 2013 को शाम 4 बजे जंतर मंतर पर आयोजित कार्यक्रम में अपने मित्रों के साथ पहुँच सकते है!   

मेल करने के साथ-साथ आप Symbolic रूप से कैंडल मार्च या पोस्टर बनाकर अपनी विरोध भी जता सकते है! कैंडल मार्च या पोस्टर के साथ खिंची विरोध की तस्वीरे #SaveNavruna  टाइप करके फेसबुक या ट्विटर पर शेयर कर सकते है! आपकी छोटी सी कोशिश नवरूणा और न्याय की इस लड़ाई को एक संतोषप्रद अंजाम तक पहुंचा सकती है....

प्लीज़, प्लीज़ कुछ करिए! आपकी एक कोशिश हमें शक्ति देगी! सेव नवरूणा मुहीम को आपकी मदद की शख्त जरुरत है! ....प्लीज़ इसे अधिक से अधिक शेयर करें ..विशेष जानकारी के लिए http://savegirlcampaign.blogspot.in/ पर visit करें!

उम्मीद है, आप हमारी अपील को नजरअंदाज नही करेंगे!.. .....
स्टूडेंट्स फोरम फॉर सेव नवरूणा 
जानकारी के लिए संपर्क करें- savenavaruna@gmail.com


पुलिस की केस डायरी से खुलती पुलिसिया कारवाई की पोल



बिहार में घटने वाले आपराधिक घटनाओं के इतिहास से मै ज्यादा परिचित नही हूँ, लेकिन नवरूणा अपहरण केस को बारीकी से अध्ययन करने के बाद इतना तो जरुर कह सकता हूँ कि बिहार पुलिस भारत की सबसे असंवेदनशील पुलिस है, जो बचपन और जवानी के बीच भी फर्क नही महसूस करती! वैसे तो पहली बार हमें नवरूणा केस की जानकारी दैनिक जागरण में छपी एक स्टोरी से पता लगा था, जो “ बेटी को बचाओं” शीर्षक से पत्रकार द्वारा बहुत ही मार्मिक तरीके से लिखा गया था! केस के लगभग हर पहलू से थोड़ा बहुत परिचय अपने मित्रों, पत्रकारों व नवरूणा के परिजनों से मिलता रहा है! लेकिन जब मेरे पास नवरूणा केस की पुलिस डायरी आई और उसे मैंने देखा तब मुझे पूरा यकीन हो गया कि मुजफ्फरपुर पुलिस ने अगर इस केस को प्रेम प्रसंग के दायरे में रखकर नही देखा होता तो अपनों की चहेती नवरूणा अपने घर में होती. उसका बचपन, उसके सपने सुरक्षित रहते! वह आज़ाद रहती!   

केस की डायरी के कुछ अंश मूल केस डायरी से संपादित करके आप सबके अवलोकनार्थ रख रहा हूँ ताकि आप भी पुलिस के बेशर्म चेहरे, परिजनों द्वारा असहयोग करने, भूमि-विवाद की बात छुपाने जैसे तर्कों की आड़ में नवरूणा की बरामदगी न होने के पुलिसिया आरोपों की सच्चाई परख सकें!
अपहरण के घटना की रात में परिजनों द्वारा जानकारी मिलने के तुरंत बाद पुलिस को सूचित किया गया था. पुलिस तक़रीबन 1 घंटे लेट से पहुंची जबकि थाने से नवरूणा का घर महज 4-5 मिनट की दुरी तय करके पैदल पहुंचा जा सकता है. 

खैर, पुलिस डायरी में “20 सितंबर, समय 8 बजे” अंकित रिपोर्ट के मुताबिक अनुसंधानकर्ता अमित कुमार नवरूणा के स्कूल जाते है जहाँ उसके स्कूल में आंठवी कक्षा की परीक्षाएं चल रही होती है. वे उपस्थिति पंजी को भी देखते है, जिसमे शत प्रतिशत उपस्थिति दर्ज थी. स्कूल में प्रिंसिपल और वर्ग शिक्षक से भी पूछताछ होती है. अपने पूछताछ के क्रम में वे नवरूणा के स्वभाव की प्रशंसा करते है और उसे होनहार बताते है!
    
“21 सितंबर, 9 बजे” अनुसंधानकर्ता नवरूणा की दोस्त श्रेया चौधरी से पूछताछ करते है. इस पूछताछ में श्रेया ने बताया, “ मै और नवरूणा एक ही क्लास में पढ़ते थे तथा साथ में ही ट्यूशन भी पढ़ने जाते थे. नवरूणा की दोस्ती हमसे और संस्कृति से ज्यादा थी तथा हमलोगों के अलावा क्लास के ही एक लड़के “विवेक” से भी था!”

विवेक का जिक्र आते ही उसके घर का पता पूछा जाता है. न बताने पर उसकी काफी खोजबीन की जाती है, लेकिन घर का पता नही मिल पाता है. यहाँ संस्कृति के घर का पता चल गया लेकिन विवेक का नही चला. इसलिए पुलिस संस्कृति के घर पूछताछ के लिए जाती है.  

नवरूणा की सबसे खास दोस्त संस्कृति पुलिसिया पूछताछ में बताती है कि “नवरूणा हमारी सबसे अच्छी दोस्त थी. हम आपस में हर बात शेयर करते थे. उसका किसी से कभी कोई झगड़ा नही होता था! उसने कभी किसी के बारे में तंग करने या दुश्मनी की कोई बात मुझसे नही बताई थी.”

केस डायरी में “22 सितंबर, 8 बजे” दर्ज रिपोर्ट में कहा गया है कि नवरूणा के परिजनों(माँ-पिताजी) के मोबाइल पर आए कॉल रिकॉर्ड को खंगाला गया, जिसमे कोई संदिग्ध नंबर नही मिला. सब परिजनों व दोस्तों के नंबर थे.

केस डायरी में 23 व 24 सितंबर को किसी भी प्रकार की कोई कारवाई का कुछ भी दर्ज नही है.
“25 सितंबर, 8 बजे” अंकित रिपोर्ट में लिखा गया है कि नवरूणा का कंकड़बाग, पटना में होने की सूचना मिली. वहां जाकर छापेमारी हुई लेकिन पुलिस के हाथ कुछ भी सुराग नही मिला.
केस डायरी में 26,27 व 28 सितम्बर को किसी भी प्रकार की कोई भी कारवाई का कुछ भी बात दर्ज नही है.

“29 सितंबर, 8 बजे” दर्ज रिपोर्ट में यह कहा गया है कि “गोरौल और मुजफ्फरपुर रेलवे स्टेशन पर नवरूणा के होने की गुप्त सूचना मिली लेकिन छापेमारी में कुछ भी नही मिला”.

30 सितंबर से लेकर 1 अक्टूबर के बीच किसी भी प्रकार की कोई भी कारवाई होने की कुछ भी सूचना डायरी में दर्ज नही है.  

“2 अक्टूबर, 10 बजे” अंकित रिपोर्ट में यह कहा गया कि पुलिस को नवरूणा के हाजीपुर में होने की संभावना की सूचना प्राप्त हुई, जिसके बाद छापेमारी हुई लेकिन कोई सफलता हाथ नही लगी”.       
3, 4 व 5 अक्टूबर के बीच किसी भी कारवाई की कोई भी कारवाई होने की कुछ भी सूचना डायरी में दर्ज नही है.

केस डायरी में “6 अक्टूबर, 8 बजे” दर्ज रिपोर्ट में लिखा गया है कि “अतुल्य चक्रवर्ती से पूछताछ की गई, जिसमे उनके रिश्ते-नातेदारों के बारे में जानकारी ली गई!”........”अनुसंधान जारी है” लिखकर जानकारी इकठ्ठा करने व अनुसन्धान के काम की इतिश्री हो गई.

केस डायरी में 7, 8 व 9 अक्टूबर के बीच किसी भी प्रकार के कोई भी कारवाई होने की कुछ भी सूचना दर्ज नही है.

“10 अक्टूबर, 10 बजे” अंकित रिपोर्ट में अतुल्य चक्रवर्ती के घर पहुंचकर, उनके मुजफ्फरपुर सहित अन्य स्थानों पर रह रहे रिश्तेदारों के बारे में विस्तार से जानकारी लेने की बात लिखी गई है. इसमें आगे उनकी ज़मीन से जुड़ी बातों के संदर्भ में भी विस्तार से जानकारी इकठ्ठा करने व पूछताछ के क्रम में रमेश कुमार उर्फ़ बबलू, राकेश कुमार, श्याम पटेल, सुदीप चक्रवर्ती और अजय गुप्ता द्वारा अपहरण किए जाने की बात नवरूणा के पिता द्वारा किए जाने की बात भी लिखी गई है. इसी पूछताछ में नवरूणा की माँ की बातों से यह तथ्य सामने आई कि “पिछले दो वर्षों से बहुत सारे लोगों ने ज़मीन लेने के लिए हमसे (नवरूणा के परिजनों से) संपर्क किया. संपर्क के दौरान ही नवरूणा की माँ को यह अंदेशा था कि अगर दिल्ली और बनारस में रहने वाले उसके रिश्तेदारों ने अपनी ज़मीन बेच दी और वे अकेले बच गए तो अपराधी उन्हें परेशान कर सकते है, उनकी ज़मीन हड़प सकते है.       

केस डायरी में 11 से 18 अक्टूबर तक, कुल 8 दिनों की कारवाई का कोई भी जिक्र नही किया गया है.

केस डायरी में “19 अक्टूबर, शाम सात बजे” अंकित रिपोर्ट में अजय गुप्ता की खोजबीन, उसका अपने घर से फरार पाए जाने, रमेश कुमार उर्फ़ बबलू, सुदीप चक्रवर्ती और श्याम पटेल की गिरफ़्तारी की बात लिखी हुई है.   

20 अक्टूबर की केस डायरी संदिग्ध आरोपियों को न्यायालय में पेश करने की बात करके समाप्त कर दी गई है!


यह यह बताना जरुरी है कि गिरफ्तारी नवरूणा के परिजनों द्वारा आत्महत्या की धमकी देने से हुई थी. उसके पहले तक पुलिस घर आकर लगातार झूठी दिलाशा दे रही और बाहर प्रेम प्रसंग की बात समाज में फैला रही थी. इन दोनों से आजिज़ आकर आत्महत्या की धमकी परिजनों ने दी, जिसके बाद सकते में आई पुलिस सक्रीय हुई और एसएसपी ने 24 अक्टूबर, 2012 तक नवरूणा की बरामदगी का भरोसा दिलाया(http://www.jagran.com/bihar/muzaffarpur-9779731.html).

केस डायरी में अंकित रिपोर्ट के मुताबिक अनुसंधानक अमित कुमार द्वारा 22 अक्टूबर को एसएसपी के पत्र (ज्ञापांक संख्या- 4335/CR/22.10.2012) के आलोक में नवरूणा केस, उसके मूल कागजातों के साथ थानाध्यक्ष जितेन्द्र प्रसाद को सौन्पा गया.

जितेन्द्र प्रसाद ने तेजी से जाँच का कार्य शुरू किया. पहले ही दिन कई बड़े भू-माफियाओं, जिसमे ब्रजेश सिंह और मो. शब्बू आलम जैसे नाम शामिल है, की गतिविधियों पर नजर रखने की बात केस डायरी में कही गई है.

केस डायरी के मुताबिक 29 अक्टूबर को पहली बार गिरफ्तार किए गए लोगों से पूछताछ की गई!
नवरूणा केस में कुछ ठोस होने का आभास पुलिस उपाधीक्षक(नगर) द्वारा नवरूणा की बरामदगी के लिए विस्तार से तैयार कार्य योजना (ज्ञापांक संख्या- 2109/नगर/दि.31 अक्टूबर,2012) से हुई. इस पत्र के अनुसार 8 बिन्दुओं पर काम करने के लिए पुलिस की अलग अलग टीम बनाई गई और उन्हें अनुसंधान में लगाया गया! इस पत्र के अनुसार 1 नवंबर को एक बैठक में इसकी समीक्षा की भी बात कही गई.  

सबसे महत्वपूर्ण जानकारी इस केस डायरी में 1 नवंबर को दर्ज है, जिसके मुताबिक ज्ञापांक संख्या- 5485/गो./1.11.2012 द्वारा एसएसपी ने मामले की जाँच में लगे पुलिस टीम को कुछ दिशा निर्देश दिए.

उसी दिन घटनास्थल का मुआयना DIG द्वारा की गई थी. DIG ने निरिक्षण के पश्चात्, वादी से पूछताछ व अन्य पहलुओं पर विचार करने के बाद पुलिस अनुसंधान में निम्न त्रुटियाँ पाई, जिसका जिक्र केस डायरी में की गई है. त्रुटियाँ कुछ इस प्रकार से बताई गई, जिसके बारे में परिजन भी शुरुआत से आगाह करा रहे थे :-

(1) घटना स्थल पर फोरेंसिक टीम को क्यों नही बुलाया गया?
(2) घटना स्थल का फिंगर-प्रिंट क्यों नही लिया गया?
(3) घटनास्थल से ताला क्यों नही जब्त किया गया?
(4) जिस गार्ड के पास गेट की चाभी थी, उससे ठीक से पूछताछ क्यों नही की गई?
(5) होटल के कर्मचारियों में से कई से पूछताछ क्यों नही की गई?
(6) तीन गिरफ्तार अभियुक्तों को रिमांड पर क्यों नही लिया गया?
(7) किस आधार पर अनुसंधानक परिवारवालों को बताते रहे कि लड़की सुरक्षित है और जल्द ही घर आ जाएगी?
(8) इस बात पर भी अनुसन्धान होना चाहिए कि क्या ट्रेफिकिंग के लिए उसका अपहरण तो नही किया गया!

इसमें यह भी कहा गया है कि........””विदित हो कि यह अत्यंत संवेदनशील मामला है और इस घटना को लेकर आम जनों में काफी आक्रोश है. यह मामला भू-विवाद से जुड़ा प्रतीत होता है. इस मामले में उपरोक्त बिन्दुओं पर अविलंब वैज्ञानिक अनुसन्धान तथा अन्य बिन्दुओं पर गहनता पूर्वक अनुसन्धान की जरुरत है.......अतएव आप सभी चर्चित बिन्दुओं का अनुपालन कर अद्यतन प्रगति प्रतिवेदन से दो दिनों के अंदर अधोहस्ताक्षरी को अवगत करावे. साथ ही इस कांड के अनुसन्धान से संबंधित प्रगति से प्रतिदिन अधोहस्ताक्षरी को अवगत करावे....ह. एसएसपी””.

इसके बाद का रिपोर्ट का जिक्र करना ज्यादा समसामयिक नही है क्यूंकि वह महज खानापूर्ति है. उसमे सिर्फ आरोपों की गठरी है! कहे तो पुलिसिया नाकामी की बू आती है!

यह कहने में कोई गुरेज नही कि नगर थानाध्यक्ष जितेन्द्र प्रसाद ने इस केस में अपनी तरफ से कोई कोर कसार नही छोड़ी, लेकिन नतीज़े तक न पहुँचने की बात संदिग्ध है! हो सकता है, उनपर दबाब हो. दबाब की पुष्टि भी उन्होंने की है, जिसे एक दैनिक अख़बार ने प्रमुखता से छपा भी था.
केस डायरी के सन्दर्भ में ऊपर लिखे गए तःथ्यों से कई बातों पर नज़र जाती है, जो पूरी घटना में पुलिसिया भूमिका को समझने में उपयोगी है.

पहला,  पुलिस प्रेम प्रसंग का रंग देने में शुरुआत से ही क्यों लगी रही?
दूसरा, जब अपहरण की शिकायत दर्ज की गई थी और पहले दिन ही भू-माफिया की बात करी गई थी तो चौतरफा कारवाई क्यूँ नही की गयी?
तीसरा, परिजनों को लगातार झूठे आश्वासन क्यूँ दिए गए?
चौथा, परिजनों को मीडिया से दूर रहने की सलाह क्यूँ दी गई?
पांचवा, गिरफ्तारी एक महीने देरी से क्यूँ हुई और गिरफ्तार लोगों से तुरंत पूछताछ क्यूँ नही की गयी?
छठा, पुलिस लगातार परिजनों के संपर्क में थी और परिजन प्रतिदिन पुलिस से बात करते थे, फिर असहयोग की बात कहाँ से आई?
सांतवा, परिजनों ने जिन भू-माफियाओं पर शक जताया था, उनपर कारवाई क्यूँ नही हुयी?

(अभिषेक रंजन की रिपोर्ट)