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Wednesday 9 January 2013

Navruna case : Local Media reports expose police inaction during initial stage of Navruna kidnapping.

मुजफ्फरपुर की स्थानीय मीडिया में छपे खबर बताते है कि किस प्रकार शुरुआत में पुलिस करवाई के आश्वासनों के सहारे मामले में ढील बरतती रही। जब नवरुना के परिजनों ने आत्महत्या की धमकी दी और मुजफ्फरपुर से लेकर दिल्ली तक जब आवाज उठनी शुरू हुई, तब पुलिस हरकत में आई। आला अधिकारी सक्रीय हुए। निचे देखे :




आत्महत्या की धमकी देने के बाद मुजफ्फरपुर के एसएसपी ने वादा किया था कि आपकी बेटी 24 अक्टूबर तक लौट आएगी। आश्वासन पाकर आत्महत्या करने का फैसला नवरुना के पापा ने टाल दिया लेकिन तय तिथि के एक दिन बीत जाने के बाद भी जब बेटी  घर नहीं लौटी तो नवरुना के पापा ने 8 नींद की गोलियां खाकर अपनी जान देने की कोसिस की। 

प्रभात खबर में 26 अक्टूबर, 2012 को छपी इस खबर में कई गंभीर सवाल उठाए गए है जो कही न कही इस पुरे मामले में पुलिसिया तंत्र की विफलता की पुष्टि करता है ।



स्थानीय अख़बारों को छोड़ दे तो नवरुना मामले में पहला रिपोर्ट बीबीसी ने ही लिखा। "बिहार का बेबस बाप और बेखबर सरकार" शीर्षक रिपोर्ट में वरिष्ठ पत्रकार पंकज प्रियदर्शी जी ने नवरुना के परिजनों का एक मार्मिक चित्रण किया लेकिन सरकार और पुलिस का कलेजा नही पसीजा।  
देखिए : full story at http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2012/10/121026_mujaffarpur_girl_arm.shtml.



इसी बीच नवरुना की एक दोस्त ने फेसबुक पर एक पेज बनाया, जिसपर शहर पर हलचल मच गई।  दिल्ली सहित पुरे देश में रहने वाले लोगो को जानकारी इसी खबर के द्वारा हुई। बाद में मालूम चला कि उस पेज को को बंद करवा दिया गया है। किसने बंद करवाया, यह भी आजतक पता नही चला। 



मीडिया में  खबर छपने व  फेसबुक पर पेज बनने के बाद शहर में प्रदर्शन होने शुरू हो गए। पहला प्रदर्शन अग्रणी संस्था ने किया।









विपक्ष के तरफ से भी थोड़ी बहुत सुगबुगाहट हुयी लेकिन सब शांत हो हो गए



दिल्ली में रह रहे छात्रों को जब इस घटना की जानकारी फेसबुक पेज और मीडिया रिपोर्ट के माध्यम से मिली तो दिल्ली विश्वविद्यालय के नार्थ कैम्पस स्थित विवेकानंद की मूर्ति के समीप 28 अक्टूबर को कैंडल मार्च किया और नवरुना मामले में तुरंत करवाई करने की मांग की।


दिल्ली में जब आवाज उठी तो प्रशासन हरकत में आई। आलाधिकारी नवरुना के घर पहुंचे।


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