नई दिल्ली, 22 अप्रैल। नवरूणा मामले की आज होनेवाली सुनवाई 1 जुलाई तक के लिए टल गई है। 27 नवम्बर, 2012 को फाइल की गई रिट- सह -जनहित याचिका पर संज्ञान लेते हुए 7 जनवरी, 2013 को मा. सर्वोच्च न्यायलय ने भारत सरकार, बिहार सरकार व बिहार के डीजीपी को नोटिस जारी करके 6 सप्ताह में जबाब माँगा था और सुनवाई की अगली तारीख 25 फ़रवरी तय की थी । तय तिथि से 5 दिन पहले तारीख बढ़कर 22 अप्रैल हो गई और फिर से 22 अप्रैल की तारीख बढ़कर 1 जुलाई हो गई है। रिट पिटीशन नवरूणा की सुरक्षित वापसी के लिए व जनहित याचिका लगभग 15% की दर से बिहार में(बिहार पुलिस की आधिकारिक आंकडे के मुताबिक-साथ में संलग्न, (22-4-2013, time 6:43pm) ) लगातार बढ़ रहे अपहरण के मामलों को रोकने हेतु अवश्यक करवाई करने के लिए दायर की गई थी।
निश्चित तौर पर, सुप्रीम कोर्ट में नवरूणा मामले की लड़ाई लड़ रहे छात्रों सहित देशभर में फैले शुभचिंतक, परिजन आज तारीख बढ़ने से निराश है। हमें यह नहीं पता, तारीख क्यों बढ़ रही है जबकि मामला अनु 32 के तहत बंदी प्रत्यक्षीकरण का दायर किया गया है जिसमे त्वरित करवाई की अपेक्षा की जाती है। सब जगह से निराश होकर हम सुप्रीम कोर्ट गए थे, स्वाभाविक है नवरूणा केस की सुनवाई न होने से हमारा भरोशा व्यवस्था पर से थोड़ा कमजोर हुआ है फिर भी हम अंतिम कोशिश जारी रखेंगे।
नवरूणा जिन्दा है, इस बात की पुष्टि लगातार इस केस से जुड़े अधिकारी परिजनों से कर रहे है, लेकिन उसकी बरामदगी क्यों नहीं हो पा रही है, यह समझ से परे है। न्यायालय में मामला लंबित होने के बाबजूद हम यह बात पूरी जिम्मेवारी के साथ कहना चाहते है कि नवरूणा मामले को प्रभावित करने की कोशिश हर स्तर पर जारी है। हम यह भी मानते है कि इस घटना के समय(18 सितम्बर) मुजफ्फरपुर में पदस्थापित रहे सभी बड़े पुलिस अधिकारीयों की इस अपहरण काण्ड में निभाई गई भूमिका संदिग्ध है जिसकी जाँच बिहार की किसी संस्था द्वारा निष्पक्ष हो पाना असंभव है। बिहार सरकार के रवैये से यह आशंका और प्रबल होती है। वह नवरूणा को, उसके अपहरणकर्ताओं को ढूंढने की वजाए अबतक इस केस को उलझाएँ रखने वाले व संदिग्ध पुलिस अधिकारीयों को बचाने में जिस बेशर्मी के साथ लगी है उससे यह लगता है कि इस अपहरण कांड को बिहार सरकार व सरकार में शामिल कुछ प्रभावशाली लोगों का संरक्षण प्राप्त है। सीआईडी को मामला सौंपे 3 महीने हो गए है लेकिन सीआईडी व उसके मुखिया अखबारी नेतागिरी करने, अबतक इस केस को उलझाएँ रखनेवाले मुजफ्फरपुर पुलिस की पीठ थपथपाने और नवरूणा के परिजनों को मानसिक तौर पर तंग करने के अलावा कुछ नहीं कर रही है। सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई जबाब इस बात की पुष्टि करती है कि जाँच के नामपर पुलिस परिजनों को, रिश्तेदारों को तंग करने, नवरूणा के लिए आवाज उठाने वालों को धमकाने के अलावा कुछ नहीं कर सकी है। यहाँ तक कि हमें आशंका है कि इस मामले में गिरफ्तार लोगों को पुलिस शो पिस के तौर पर इस्तेमाल कर रही है और पुरे मामले को सुलझाने की वजाए डीएनए के जाल में उलझा रही है। ऐसा लगता है जैसे डीएनए ही नवरूणा को खोज निकालेगी!
विधानसभा, विधानपरिषद से लेकर अन्य मंचों तक सरकार के मुखिया व उसके जिम्मेदार मंत्री बिना तथ्यों को जाने जिस प्रकार से पुलिस के पक्ष में अबतक बयानबाजी की है एवं घटना के इतने दिनों बाद भी आज तक सरकार के किसी नुमयिन्दा का परिजनों के घर नहीं आना साबित करता है कि सरकार नवरूणा मामले को लेकर गंभीर नहीं है । ऐसा लगता है कि डीएनए के ड्रामे रचने वाली बिहार पुलिस व सरकार नवरूणा को खोजने की वजाए उसकी कीमती ज़मीन हड़पने वालों के षड़यंत्र को अंजाम देने व अपराधियों को बचाकर इस मासूम की जान लेने पर उतारू है, उसीमें अपना समय लगा रही है।
हमें यह डर है कि सुप्रीम कोर्ट और दिल्ली में इस केस को जीवित रखनेवाले व नवरूणा के न्याय को संघर्षरत छात्रों सहित नवरूणा के परिजनों के जान-माल को नुकसान पहुँचाने की साजिश रची जा सकती है। इस केस से जुड़े एक बड़े पुलिस अधिकारी की दिल्ली में पिछले 2-3 दिनों से उपस्थिति इस आशंका को और पुष्ट करती है। हम यह भी मानते है कि नवरूणा केस से जुड़े तमाम सबूतों को नष्ट करने व महत्वपूर्ण गवाहों को मानसिक-शारीरिक-आर्थिक क्षति पहुंचाई जा रही है।
पुनः हम देश की जनता से यह अपील करते है कि नवरूणा के लिए आवाज उठाएं और एक बेटी को न्याय दिलाने की मुहीम में हमारा व परिजनों का साथ दें। साथ ही केंद्र सरकार से हमारी गुजारिश है कि केस की जाँच अविलंब सीबीआई को सौंपने की मांग माने व संदिग्ध पुलिस अधिकारीयों को हिरासत में लेकर इस कांड का पर्दाफास करें।
स्टूडेंट्स फोरम फॉर सेव नवरूणा के लिए अभिषेक रंजन
09717167232
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