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Friday 15 March 2013

देश की एक बेटी नवरुणा के लिए हम अपनी आवाज बुलंद करें, 17 मार्च को नवरुणा के लिए पहुंचे जंतर मंतर


आज पूरा देश जानता है कि मुजफ्फरपुर, बिहार से पिछले 175 दिनों से भी ज्यादा समय से अपहृत नवरुणा का अबतक पता नहीं चल पाया है। सब जानते है कि नवरुणा का अपहरण शहर के बीचोबीच स्थित करोड़ों की संपत्ति हड़पने की साजिश की तहत अंजाम दी गई है।  मीडिया रिपोर्ट व अभीतक इस केस में हुई प्रगति को देखते हुए लगता है कि बिहार सरकार-पुलिस व भू माफियाओं के परस्पर गठबंधन से यह घटना अंजाम दी गई है।

यह भी विदित तथ्य है कि नवरुणा के परिजनों को मीडिया के सामने मुहं न खोलने की पुलिसिया धमकी के चलते यह अपहरण का मामला शुरूआती एक महीने तक दबा रहा। पुलिस 12 वर्षीया नवरुणा को खोजने की वजाए 7 वी क्लास में पढने वाली इस छात्रा को प्रेम प्रसंग में भाग जाने की बात कहती रही। उसके क्लास के टीचरों, दोस्तों से पूछताछ व तंग करती रही। जब मामला फेसबुक के माध्यम से हम दिल्ली में पढ़ रहे छात्रों के ध्यान में आया तो हमने विरोध करना शुरू किया। परिणाम यह हुआ कि बिहार पुलिस, दिल्ली आकर हमें धमकी दी और साफ-साफ सुशासन के लहजे में बोली कि इस मामले में किसी आलाधिकारियों से न मिले। किसी के आगे गुहार न लगाए। प्रेशर बनेगा तो फिर छोड़ेंगे नही। हम डरे, लेकिन दुगुनी ताकत से फिर उठ खड़े हुए। सब जगह गए, जहाँ जहाँ जाना चाहिए था। अंत में सुप्रीम कोर्ट में रीट याचिका डालकर इसमें कोर्ट से हस्तक्षेप करने की मांग की। लेकिन न्याय फिलहाल व्यवस्था की जंजीर में कैद है। डेट पर डेट। अगली सुनवाई 22 अप्रैल को है। न्याय की अंतिम चौखट पर गुहार लगाने के बाबजूद अबतक कुछ ठोस नही हो पाया है। ऐसी स्थिति में हम क्या करे। चीखना चिल्लाना ही तो आम जनता के फितरत में लिखा है! 

इस अपहरण के पीछे कौन लोग है? यह बात न तो हम जानते है और न ही जानने में दिलचस्पी रखते है लेकिन जिस तरीके से बिहार सरकार अपनी पुलिस की पीठ थपथपा रही है, उससे यह साफ़ जाहिर कि अपराधियों की पहुँच बड़ी लम्बी है। राजनीतिक रूप से बड़े लोग इसमें शामिल है।     

लगभग 6 महीने बीतने के बाद भी कही कुछ अता पता नही है नवरुणा का। आज स्थिति इतनी दयनीय हो गई है कि जो परिजन कभी पुलिस पर विश्वास कर किसी को भी, यहाँ तक की मीडिया को भी, कुछ भी बताने से परहेज करते थे। वे डरे, सहमे से है। रोते बिलखते है और "धैर्य रखकर चुप रखने की" झूठी पुलिसिया वादों से तंग है। 

नवरुणा न तो वोट बैंक है और न ही किसी की जाती की, जो बिहार की जनता के ह्रदय को झकझोड़ती। दुर्भाग्य से वह उस बंगाली समुदाय से संबंध रखती है, जिसने न केवल मुजफ्फरपुर को बल्कि समूचे बिहार को काफी कुछ दिया है। अपनी शहादत दी है। अपने खून-पसीने की कमाई से बिहार को संवारा-संजोया है। लेकिन अब उसकी कीमत अब उसे अपनी पहचान गवांकर, औने पौने दामपर अपनी पैतृक संपत्ति को बेचकर चुपचाप भागने या अपना सब कुछ लुटाकर चुकाना पड़ रहा है।  

इस मामले में  राजनीतिक चुप्पी अपने आप में सवाल खड़े करती है। लगता है जैसे सर्वदलीय गठबंधन हो गया हो इस मामले में चुप रहने की। बार-बार आग्रह के बाद कुछ होता दिखा भी तो वह रस्मी ज्यादा दिखा, परिणामकारी बनाने की नियत नहीं दिखी। आज राज्य की व्यवस्था ड्रामा रचकर उसके घर पर कही से फेंके गए कंकाल की आड़ में सारे मामले को दबाने पर जुटी है। नवरुणा को खोजने, उसके बारे में कुछ बताने की वजाए उल्टे नवरुणा के परिजनों को फंसाने की कोशिश कर रही है। दुर्भाग्य है कि सीएम विधानसभा में जनता को बरगलाते हुए उसके परिजन पर जाँच में सहयोग नहीं करने का इल्जाम लगा रहे है, जबकि वे शुरुआत से ही पुलिस पर पूरा भरोसा कर रहे थे, छोटी छोटी जानकारियाँ दे रहे थे। सीएम के बयान से लगता है कि वे भी इस मामले में पुलिस की नाकामी को समर्थन कर रहे है व अपराधियों के साथ ही है।  

शहीद खुदीराम बोस की धरती आज शर्मसार है। बिहार की तरक्की में अपना महत्वपूर्ण योगदान देनेवाले बंगाली परिवारों को जबरदस्ती उजाड़ा जा रहा है। मीडिया रपटों व बिहार के विभिन्न शहरों में जाकर ज़मीनी हालात पता करे तो आज हालात यह है कि बंगाली अल्पसंख्यक समुदाय की पैतृक संपत्ति, जो राज्य के विभिन्न शहरों में थी, भू माफियाओं व राजनेताओं की परस्पर गठजोड़ से हड़प लिए जा रहे है। उन्हें राज्य से भागने पर मजबूर किया जा रहा है।

कोई कुछ भी कहे, इस मामले ने हमें बुरी तरह झकझोड़ कर रख दिया है। हमें "बिहार में सुशासन है" इस वाक्य  से नफरत हो गई है। यह शायद कम रहता लेकिन दिल्ली में हमें व नवरुणा को लेकर कुछ लिखने, करने की कोशिश करनेवालों को मिले धमकी ने विरोध करने पर जबरदस्ती मजबूर किया।  कुछ दोस्तों के सहयोग, शुभचिंतकों के उत्साहवर्द्धन से हम लगातार नवरुणा की घर वापसी व उसे न्याय दिलाने को कृतसंकल्पित है। बिना किसी राजनीतिक -आर्थिक सहयोग के व्यक्तिगत मामला मानकर हमलोग लड़ाई लड़ रहे है लेकिन वास्तिविकता है कि आज हमसब डरे हुए है। डर इस बात का है- क्या हम कभी बिहार में निर्भय होकर जी सकेंगे? क्या हमारे घरवाले सुरक्षित रह सकेंगे? क्यूंकि सुना है, जंगलराज से "सुशासन के आतंकराज" में बदले बिहार में विरोधियों को बक्शा  नहीं जाता। 

सेव नवरुणा मुहिम में लगे हम कुछ छात्रों को अपने भविष्य को लेकर चिंता होना स्वाभाविक है। लेकिन आप ही बताएं- क्या हम चुपचाप बैठ जाए? क्या बैठने से हमें नवरुणा मिल जाएगी ? पुलिस की धमकी में, जो-जो उड़ रहे है उसे देख लेने की जो बात कही गई थी, उसे भूल जाए? क्या हम सिर्फ इसलिए चुप बैठ जाए कि इसमें बड़े लोग शामिल है, वे हमारा भविष्य चौपट कर देंगे? नवरुणा हमारी बहन या कोई रिश्तेदार रहती तभी हम उसके लिए बोलते-लिखते, कुछ करते ? 

समय की मांग है कि देश की एक बेटी नवरुणा के लिए हम अपनी आवाज बुलंद करें । सवाल सिर्फ नवरुणा तक रहती तो हम बर्दास्त करने की थोडा बहुत सोच सकते थे लेकिन हालात बहुत ख़राब हो गए है हमारे बिहार में। इसे बर्बाद होने से बचाने के लिए अपनी आवाज उठाए। कुछ हो सकें तो करे वरना इस सुशासन की आड़ में न जाने कितनी नवरुणा गायब होती रहेगी। आम बिहारी मरते, लुटते, पिटते रहेंगे। जब हम सुरक्षित ही नहीं रहेंगे तो फिर हम "विशेष" बनकर भी क्या कर लेंगे। 

हम न तो बागी है और न ही बदमाश। हम न्याय चाहते है। हम शांति-खुशहाली चाहते है। लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं है कि आप हमारे साथ अन्याय करते रहे और हम चुपचाप सहते रहे। लड़ेंगे। पूरी ताकत से लड़ेंगे। जो भी अंजाम होगा, उसे सहने, देखने को तैयार है। 

स्टूडेंट फोरम फॉर सेव  नवरुणा

(Written by Abhishek Ranjan, Views expressed is personnel and have no connection with any organisation)

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