"तीन लड़कियों का पिता होने के नाते मैं भी आप सभी की तरह इस मामले (महिलाओ के साथ हो रहे अत्याचार पर) को संजीदगी से महसूस करता हूं। मैं, मेरी पत्नी और मेरा परिवार मिलकर इस क्रूर अपराध की शिकार लड़की के प्रति चिंतित हैं।"
"मैं आपको भरोसा दिलाता हूं कि देश में महिलाओं की सुरक्षा के लिए हर संभव कदम उठाए जाएंगे।"
लेकिन प्रधानमंत्री जी से देश के एक नागरिक के हैसियत से हम यह जानना चाहते है कि आखिर वे या भारत सरकार के अन्य जिम्मेवार संस्थानो ने नवरुना के मामले पर कुछ ठोस करवाई अबतक क्यूँ नहीं की। माना कि प्रधानमंत्री जी के पास इतना समय नहीं है कि वह नवरुना की बहन के पत्र को पढ़ पाते, लेकिन प्रधानमन्त्री कार्यालय महज एक पत्र लिखकर अपनी भूमिका समाप्त मान लेता है, वह क्यूँ महीने बाद भी ठोस करवाई नहीं करता ? क्या प्रधानमंत्री जी इस बात का जबाब देंगे कि 97 दिन बीतने के बाद भी एक बेटी अपने घर लौटना तो दूर उसका सुराग देश की पुलिस क्यूँ नहीं लगा पाती है ?
निचे देखिए किस प्रकार से नवरुना मामले में सरकारी उदासीनता हमें देखने को मिली है। सब जगह गुहार लगाने के बाबजूद कोई ठोस करवाई होने की वजाए सिर्फ टाल-मटोल वाली स्थिति देखने को मिलती है। बिहार सरकार और बिहार पुलिस की नवारुना मामले में निष्क्रियता के बाद एक उम्मीद जगी थी कि केंद्र सरकार व उसकी संस्थाए कुछ करेगी, लेकिन वह भी महज कागजी खानापूर्ति ही करता दीखता है।
यह पहला पत्र है जो 20 अक्टूबर को नवरुना की बहन नवरुपा ने प्रधानमंत्री को पात्र लिखकर अपनी बहन को बचाने की गुहार लगाई थी :--
20 अक्टूबर, 2012 को प्रधानमंत्री कार्यालय को पत्र |
बहुत बार मांगने के बाद 26 नवंबर, 2012 को प्रधानमंत्री कार्यालय से एक पत्र निर्गत किया गया, जिसमे बिहार के मुख्य सचिव को नवरुपा द्वारा लिखे पत्र को भेजकर करवाई करने की इच्छा व्यक्त की गई। दुखद है कि प्रधानमंत्री कार्यालय से पत्र मिलने के बाद कोई करवाई करने या इससे सम्बन्धी बयान बिहार सरकार की तरफ से नहीं आया।
प्रधानमंत्री कार्यालय से भेजा गया पत्र है :--
राष्ट्रपति कार्यालय में भी कई पत्र भेजे गए। ज्ञापन सौंपते समय न केवल राष्ट्रपति के रूप में पूरे मामले में हस्तक्षेप करने का आग्रह किया गया है बल्कि श्री प्रणव मुखर्जी के नवरुणा के दादा स्व. उदय शंकर चक्रवर्ती से मित्रता की याद दिलाते हुए नवरुणा के घर लौटने में अपनी सक्रिय पारिवारिक भूमिका निभाने का भी आग्रह किया है। इन सबके बाबजूद 18 दिसंबर,2012 को बस एक पत्र निर्गत करके राष्ट्रपति भवन खामोश हो गया।
राष्ट्रपति भवन द्वारा निर्गत पत्र |
संवैधानिक प्रावधानों के तहत कानून-व्यवस्था राज्य के जिम्मे आता है लेकिन केंद्र आवश्यकता पड़ने पर हस्तक्षेप कर सकता है। इस उम्मीद में की केंद्रीय गृह मंत्री नवारुना अपनी बेटी के दर्द में तड़पते बाप की गुहार सुनेंगे, गृह मंत्रालय में भी एक पत्र 5 नवम्बर को सौंपा गया।
5 नवंबर,2012 को गृह मंत्रालय में सौपा गया ज्ञापन |
7 दिसंबर को गृह मंत्री को सौप गया ज्ञापन |
7 दिसंबर को गृह मंत्री से मिलकर अपहरण की घटना से अवगत कराते परिजन |
13 दिसंबर को गृह मंत्री को सौपा गया पत्र है : -
13 दिसंबर को गृह मंत्री को सौपा गया पत्र |
30 अक्टूबर,2012 को आयोग के कार्यालय में एक अपील की गई जिसकी मूल प्रति है :--
30 अक्टूबर को मानवाधिकार आयोग से शिकायत |
6 दिसंबर,2012 को आयोग द्वारा जारी नोटिस : --
6 दिसंबर,2012 को आयोग द्वारा जारी नोटिस |
देश के नौनिहालों के भविष्य के साथ कुछ खिलवाड़ न हो, बच्चो के अधिकारों का कोई हनन न हो, उसके लिए संसद ने राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग बनाया। उस राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष व अन्य सदस्यों से मिलकर जल्द से जल्द कुछ ठोस करवाई करने का आग्रह किया गया। लेकिन अभीतक कुछ ठोस हुआ हो, कुछ अता पता नहीं है।
12 नवंबर को आयोग के अध्यक्ष डॉ. शांता सिन्हा व आयोग के अन्य सदस्यों को सौपे गए पत्र :--
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग को सौंपा गया पत्र |
नवारुना के शुभचिंतको ने मुजफ्फरपुर में जब कुछ ठोस करवाई नहीं होता देखा, तब दिल्ली में नवारुना के अपहरणकर्ताओ के चंगुल से छुड़ाकर उसके घर लौटने के लिए आवाज उठानी शुरू की। 4 नवंबर,2012 को जंतर मंतर पर प्रदर्शन करने छात्र पहुंचे और नवारुना मामले में तुरंत करवाई करने सम्बन्धी सरकार से मांग की।
4 नवंबर,2012 को जंतर मंतर पर नवारुना के लिए प्रदर्शन करते दिल्ली के छात्र |
28 अक्टूबर को दिल्ली विश्वविद्यालय के नार्थ कैम्पस स्थित विवेकानंद की मूर्ति के समीप नवारुना के लिए कैंडल मार्च निकालते दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र |
नावारुना मामले में पुलिसिया उदासीनता व अकर्मण्यता के अनेक सबूत दिए जा सकते है। अपहरण के तुरंत बाद अपहरण की शिकायत पुलिस थाने में दर्ज करवाई गई (निचे देखे), लेकिन पुलिस ने 11 साल की बच्ची के मामले में प्रेम प्रसंग का मामला और मधुबनी कांड में व्यस्त होने का बहाना बनाकर लगभग एक महीने तक कोई ठोस करवाई नहीं की। सिर्फ दिलाशे और आश्वासन मिलता रहा।
इसके साथ साथ जंतर मंतर पर नवरुना के लिए प्रदर्शन करने के बाद जिस तरीके से दिल्ली में पुलिस को भेजकर छात्रों को धमकाने का काम किया है, उससे बिहार सरकार व वहां की पुलिस के इरादे साफ हो जाते है कि वह नवारुना के मामले में अपराधियों के साथ है। इसका एक सबूत अचानक नवारुना के घर के समीप बरामद हुए कंकाल और उसको जबरदस्ती नवारुना का ही होने सम्बन्धी पुलिसिया दावें है। पिछले कुछ दिनों से डीएनए टेस्ट जबरदस्ती लेने के नाम पर नवारुना के माता पिता को तंग करने में जुटी है जबकि मीडिया रिपोर्ट कंकाल के किसी व्यस्क का होने का दावा करती है। अभीतक उस कंकाल की फोरेंसिक जाँच की रिपोर्ट भी नहीं आई है।
इन परिस्थियों में हम कैसे यकीन करे कि देश की सरकारी व्यवस्थाएं सुचारू ढंग से काम कर रही है और वह वास्तव में महिलाओ, विशेषकर छोटी बच्चियों की सुरक्षा को लेकर गंभीर है।
हम नवारुना के मामले में बिहार सरकार की करवाई से एक प्रतिशत भी संतुष्ट नहीं है। हमारा मानना है कि स्थानीय पुलिस पदाधिकारी नवारुना मामले को लेकर बिल्कुल कुछ करवाई करने के पक्ष में नहीं है। नवारुना मामले में भारत सरकार व उसकी संस्थाओ के कार्यप्रणाली से हमारी अंतिम उम्मीद भी टूट रही है।
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