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Thursday 31 January 2013

कंकाल के मायाजाल में फंसी नवरुणा अपहरण कांड की गुत्थी


डीएनए टेस्ट के नामपर लोगो को बरगलाने में लगी है पुलिस, 
अपहरण कांड को दबाना चाहती है बिहार सरकार 

18 सितम्बर, 2012 को मुजफ्फरपुर शहर से नवरुणा के अपहरण हुए 135 दिन हो गए, लेकिन अबतक उसका पता नही चल पाया है। 7वी कक्षा में पढनेवाली बंगाली मूल की 12 वर्षीय नवरुणा की सुरक्षित घर वापसी हेतु राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री से लेकर मानवाधिकार आयोग, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग सहित सुप्रीम कोर्ट तक में गुहार लगाई जा चुकी है। तमाम पुलिसिया आश्वासनों के बावजूद नतीजा शून्य है। दुर्भाग्य तो यह है कि सुशासन की पुलिस एक सुराग तक ढूंढ़ नहीं पाई है। इसी बीच तक़रीबन 67 दिन बीतने के बाद 26 नवंबर, 2012 को अचानक इस अपहरण कांड में एक नया मोड़ आ जाता है और नाटकीय अंदाज में  नवरुणा के घर के समीप एक कंकाल बरामद हो जाती है।  पहले प्रेम प्रसंग, फिर दबाब बढ़ने पर अपहरण की बात करने वाली पुलिस एकाएक नवरुणा के घर के समीप मिले कंकाल को नवरुणा का होने की बात को लेकर इतना ज्यादा सक्रिय हो जाती है कि अनुसन्धान का मतलब सिर्फ मेडिकल टेस्ट हो जाता है। प्रतिदिन बेटी की बरामदगी के वादे करनेवाले पुलिस अधिकारी इस कंकाल के मिलने के बाद चुप्पी साध लेते है। आज स्थिति यह है कि हर तरफ नवरुणा केस का जिक्र आते ही ""डीएनए टेस्ट परिजन क्यों नहीं दे रहे है"" के सवाल गूंज रहे है। मर्यादित रूप से सवाल उठाना, लोकतांत्रिक विचारो की अभिव्यक्ति का ही एक रूप है जो न्यायसंगत भी है और जरुरी भी। लेकिन सवाल उठाने के नामपर पुरे प्रकरण को एक गलत दिशा देना सर्वथा अनुचित है। शायद  नवरुणा का अपहरण करनेवाले व अपहरण के षड्यंत्रकर्ता भी यही चाहते है कि अपहरण की बात भूलकर लोग इधर उधर की बातों में उलझे रहे। 
इससे पहले की और कुछ कहा जाए पुरे मसले को समझना बहुत जरुरी है। हुआ यूँ कि जवाहरलाल रोड स्थित नवरुणा के घर के पास की नाली की सफाई के दौरान 26 नवंबर को एक कंकाल दो थैलीयो में बरामद हुआ। बहुत कम चौड़ी नाली में मिली इस कंकाल ने अचानक पुरे अनुसन्धान की दिशा मोड़ दी। कंकाल के प्रत्यक्षदर्शियों ने इसे किसी व्यस्क का माना। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, एसएसपी ने भी इस बात को स्वीकार किया था कि कंकाल किसी बड़े व्यक्ति का है।(http://articles.timesofindia.indiatimes.com/2012-11-27/patna/35386850_1_human-skeleton-gunny-bag-drain इसी नाली से दो दिनों बाद एक कटी हुई हाथ के टुकड़े, खून के धब्बे मिले। अज्ञात के विरुद्ध दफा 302 के तहत मुकदमा ( न. 640/12, दिनांक-26.11.2012) दर्ज हुआ। नवरुणा के पिता को एसएसपी ने कंकाल की जब तस्वीरे दिखाई तब उन्होंने इसे अपनी बेटी का होने से पूरी तरह इंकार किया और इसे साजिश के तहत की गई करतूत बतलाया।  कंकाल मिलने के समय कुछ लोगो ने यह भी कहा कि यह शहर में मधुबनी कांड की तरह आग लगाने के लिए रचे गए षड़यंत्र का हिस्सा था लेकिन मुजफ्फरपुर के लोगो ने धैर्य का परिचय दिया और शहर में  शांति बनी रही ।
कंकाल के मिलने के बाद अचानक नवरुणा को ढूंढ़ निकालने के वादे करनेवाले पुलिस अधिकारीयों का रुख ही बदल गया। सब कंकाल के पीछे पड़ गए। हद तो तब हो गयी जब कंकाल मिलते ही अप्रत्यक्ष तरीके से यह मान लिया गया कि यह नवरुणा का ही है।  यहाँ तक कि  भारत का यह पहला मामला होगा जहाँ कंकाल घर के समीप बरामद होते ही पुलिस डीएनए टेस्ट के लिए सैम्पल लेने के लिए दबाब बनाना शुरू कर दी। सवाल उठता है कि कंकाल के सम्बन्ध में कुछ जानकारी, जैसे उम्र, लिंग, हत्या की अनुमानित तिथि आदि की जानकारी बगैर कैसे पुलिस टेस्ट के लिए कह सकती थी जबकि अभीतक फोरेंसिक जाँच की रिपोर्ट भी नहीं आई थी।  इस बात की पुष्टि एसएसपी द्वारा प्रभात खबर को 30 नवंबर को दिए इस इंटरव्यू से भी होती है, जिसमे टेस्ट लेने के लिए कोर्ट का आदेश लेने की बात एसएसपी राजेश कुमार ने कही थी।





इसके अलावा यह भी सुनने में आया है कि कंकाल के साथ बरामद खोपड़ी देखने से लगभग एक वर्ष पुराना लगता था। अगर उसमे से मिटटी निकाला जाता तो तक़रीबन आधे किलो मिटटी के अंश पाए जाते। 

कंकाल मामले में एक नया मोड़ तब आया जब प्रभात खबर में छपी रिपोर्ट ने इस बात पर मुहर लगाने का काम किया कि कंकाल नवरुणा का नही है बल्कि 30-40 साल के किसी व्यस्क का है । सूत्रों के हवाले से 2 दिसंबर, 2012 को छपी अख़बार के पहले पृष्ठ की इस पहली  खबर में यह दावा किया गया था कि कंकाल 30 से 40 साल के किसी व्यक्ति का है। यह खबर 2 बार छपी। 

ऐसे में यह सवाल उठाना क्या गलत होगा कि जो तथाकथित फोरेंसिक जाँच की रिपोर्ट गोपनीय तरीके से ही सही सार्वजनिक हुई है, वह गलत है, झूठी है ? अगर प्रभात खबर में छपी खबर झूठी थी तो दो सवाल उठते है; पहला, क्या ऐसे संवेदनशील मामलो में कोई अख़बार अपनी लीडिंग स्टोरी बिना किसी तथ्य के छाप सकता है ? दूसरा, पुलिस ने इसका खंडन क्यों नहीं किया?  

इस प्रकार देखा जाए तो लगता है कि सुनुयोजित तरीके से इस अपहरण कांड की पूरी स्क्रिप्ट पहले ही रची जा चुकी थी जिसका एकमात्र मकसद महज ज़मीन के लिए इंसानियत को गिरवी रखना था।

पुरे प्रकरण को लेकर मन में कुछ सवाल बार बार उठता है कि- 
 
(1) नवरुणा के घर के समीप मिले कंकाल और फोरेंसिक जाँच को भेजी गयी कंकाल क्या एक थे या अलग अलग ? क्यूंकि कंकाल के प्रत्यक्षदर्शी कंकाल के किसी बड़े व्यक्ति का होने की बात कह रहे थे, जिसकी पुष्टि स्थानीय अखबारों ने भी की है। 

 (2) निदान, जिसके जिम्मे शहर की सफाई है, के कर्मचारी इतने सुबह किसके कहने पर उसके घर के पास सफाई करने पहुंचे थे ? सफाई करना वही से क्यों प्रारंभ किया जहाँ से कंकाल मिला ?  

 (3) नाली से बरामद खून के धब्बे, कटी हुई हाथ आखिर किसका था? 

 (4) कंकाल मिलने के साथ ही पुलिस तत्काल जाँच के लिए परिजन पर क्यूँ दबाब बनाना शुरू कर दिया जबकि फोरेंसिक रिपोर्ट आई भी नहीं थी? 

 (5) अभीतक कंकाल घर के समीप डालने वालों तक पुलिस क्यूँ नहीं पहुँच पाई है ?  

(6) जब से कंकाल मिला है तबसे नवरुणा के सुरक्षित घर लौटने के आश्वासन देने की वजाए इस प्रकार का माहौल क्यों बनाया जा रहा है कि कंकाल नवरुना का ही है ?             

(7) अभीतक नवरुणा के घर लौट आने के दावें करने वाला प्रशासन अचानक कंकाल तक ही अपनी जाँच को क्यों सिमित कर दिया है ? 

(8) फोरेंसिक जाँच रिपोर्ट आने में एक महीने का समय क्यों लगा, जबकि यह महज चंद घंटों या दिनों में हो सकता था ?  

(9) फोरेंसिक जाँच रिपोर्ट परिजनों या मीडिया को क्यों नहीं दिखाया गया ? 

(10) जब CID को जाँच का जिम्मा सौंपा गया तो वह लड़की को खोजने की वजाए टेस्ट की बात क्यों कर रही है ?  

(11) जब नवरुणा के परिजन स्थानीय अदालत के आदेश को उपरी अदालत में चुनौती देने की बात लगातार कर रहे है, फिर पुलिस लगातार दबाब क्यों बना रही है ? अगर उसे फोरेंसिक रिपोर्ट पर भरोसा है तो वह उपरी अदालत से समान आदेश के लिए निश्चिंत रहे।

इसके अलावा भी कुछ सवाल है जिनका उत्तर नवरुणा के शुभचिंतक जानना चाहते है :-  
(1) 12 वर्षीया नवरुणा  के अपहरण की शिकायत दर्ज करवाने के बाद मामले में तुरंत करवाई क्यों नहीं की गई? करवाई में हुए देरी के लिए किसी को दंडित क्यों नहीं किया गया या उससे अभीतक पूछताछ क्यों नहीं की गयी देरी होने के सम्बन्ध में? हो सकता है जाँच में देरी किसी ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके करवाया हो! अगर यह पता चल जाए तो अफरंकर्ताओ तक आसानी से पहुंचा जा सकता है।  

(2) क्या प्रेम प्रसंग का मामला बताकर पुलिस मामले को दबाना चाहती थी? 

(3) फोरेंसिक जाँच अपहरण के तुरंत बाद क्यों नहीं की गयी जबकि पूरा मामला शुरुआत से ही भूमि विवाद से बताया जा रहा था ? 

(4) दिल्ली में सेव नवरुणा कैम्पेन चला रहे छात्रों को धमकाने पुलिस क्यों आई थी और किसके कहने पर आई थी ?  

(5) मामले की जाँच कर रहे अधिकारी को बार बार क्यों बदला गया ?  

(6) बिहार सरकार का कोई प्रतिनिधि अभीतक पीड़ित परिवार से क्यों नहीं मिला ?  

(7) कुछ औपचारिकाताओ को छोड़ दें तो सभी राजनितिक दल अभीतक क्यों चुप्पी साधे हुए है? क्या उनपर दबाब है ?  

(8) बार-बार परिजनों द्वारा सहयोग न करने की बात क्यों कही जा रही है जबकि जो जानकारी हमें मिली है, उसके मुताबिक वे लगातार पुलिस के संपर्क में है और हर छोटी-बड़ी जानकारी तुरंत पुलिस से शेयर करते है। आज भी सबसे ज्यादा यकीन  उनका मीठी मीठी बातें करके अबतक झूठी दिलशा देनेवाले एसएसपी पर ही है।  

 (9)मुजफ्फरपुर से लेकर दिल्ली तक के छात्रों को, जो लोकतान्त्रिक तरीके से नवरुणा के लिए आवाज उठा रहे थे, उनके मुहं बंद करने की कोसिस क्यों की गई पुलिस द्वारा?  

(10) परिजनों ने अपहरण के तुरंत बाद ही भूमि माफियाओं का इसमें हाथ होने की बात कही और इस अपहरण के मूल को शुरुआत से ही ज़मीन को माना, फिर पुलिस यह सवाल क्यों उठाती रहती है कि परिजनों ने ज़मीं विवाद की बात छुपाई ।

जब से इस इस केस पर हमने काम करना शुरू किया तबसे लगातार यह सुनने में आता था कि नवरुणा को खोजने के लिए दर्जन भर अधिकारियों को लगाया गया है। पुलिस की टीम ने शहर व आस-पास के जिलों के अलावा दिल्ली, कोलकाता व हावड़ा जाकर जांच की है। नवरुणा व उसके परिवार के हर कनेक्शन को खंगाला गया।  कुछ लोग शक के आधार पर पकड़े भी गए। जेल भेजे गए। रिमांड पर लेकर पूछताछ भी की गई। लेकिन अंत में हुआ अभीतक क्या? जबाब है कुछ नहीं। 

इन परिस्थितियों में, पुलिस और राज्य सरकार के नुमयिन्दो को डीएनए टेस्ट न देने सम्बन्धी परिजनों का फैसला बिलकुल उचित है। पुलिस को टेस्ट देने के लिए दबाब बिल्कुल नहीं बनाना चाहिए। दबाब की स्थिति में परेशान करने की शिकायत कोर्ट में दर्ज करवाई जा सकती है। परिजन हमेशा टेस्ट देने की बात करते है लेकिन वे टेस्ट सिर्फ सीबीआई को ही देंगे, इस बात में दम है। लोगो को चाहिए कि नवरुणा के बहादुर परिजनों का साथ दे। 

पूरी उम्मीद है कि आगामी 25 फ़रवरी को जब सुप्रीम कोर्ट में नवरुणा मामले की सुनवाई होगी तो कोर्ट नवरुणा को तुरंत कही से भी ढूंढ़कर लाने का आदेश देगी। नवरुणा के शुभचिंतक के नाते हम फिर से बिहार सरकार से विनम्र आग्रह करते है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से पहले वह बिना देरी किए तुरंत अपहरण के इस मामले को सीबीआई को सौंपे। विश्वास है, नवरुणा के साथ न्याय होगा। हम अंतिम दम तक नवरुणा के न्याय के लिए लड़ते रहेंगे।


दो मीडिया कटिंग साथ में संलग्न है, जो पुरे विषय को समझने में मदद करती है :-





डीएनए टेस्ट से क्यों इंकार कर रहे हैं लापता नवरुणा के मां-बाप

दैनिक भास्कर.कॉम | अजय कुमार  |  Jan 16, 2013, 12:12PM IST


पटना/मुजफ्फरपुर। आखिर क्या वजह है कि अतुल्य चक्रवर्ती और मैत्री चक्रवर्ती अपने ब्लड सैंपल देने से इंकार कर रहे हैं? इस सवाल का जवाब भले ही किसी के पास नहीं हो, चक्रवर्ती दंपति का कहना है कि उनकी बेटी जिंदा है और पुलिस किसी न किसी तरह उनके खिलाफ ही साजिश कर रही है। अतुल्य चक्रवर्ती खुद अब सुप्रीम कोर्ट जाकर मामले की सीबीआई की जांच कराने की मांग करने वाले हैं।
यह लड़की है मुजफ्फरपुर की नवरुणा चक्रवर्ती। वह पिछले 19 सितंबर से लापता है। उसे तलाशने की बहुत कोशिश की गयी। लेकिन नहीं मिली। पुलिस की भूमिका इस लिहाज से हैरान करने वाली रही कि उसने जांच को लेकर विरोधाभाषी व्यवहार किया। कभी नवरुणा की बरामदगी के लिए पुलिस टीम के गठन की बात कही गयी तो कभी सीआइडी के जिम्मे मामले को सौंपने की बात कही गयी। हालांकि, नवरुणा के माता-पिता मामले की सीबीआई जांच कराने की मांग दोहराते रहे हैं। नवरुणा की गुमशुदगी के पीछे स्थानीय भूमि माफियाओं की भूमिका कही जाती है।

एडीजी गुप्तेश्वर पांडेय के दो दिसंबर को इस मामले की सीआईडी जांच की सिफारिश की थी और 15 जनवरी को सीआईडी की टीम नवरुणा के माता-पिता से पूछताछ के लिए उसके घर गयी। अतुल्य चक्रवर्ती कहते हैं: इसी से पुलिस की गंभीरता का अंदाजा लगाया जा सकता है। पुलिस ऐसे व्यवहार कर रही है जैसे मेरी बेटी नहीं, सूटकेस गुम हो गया हो और उसकी तलाश वह कर रही है। इस बीच पुलिस ने नवरुणा के घर के पास से बरामद एक कंकाल को लेकर जांच की दिशा बदल दी। उसने नवरुणा के माता-पिता का ब्लड सैंपल लेने की कोशिश की। पर चक्रवर्ती दंपति ने उसे देने से इंकार कर दिया। पुलिस कोर्ट गयी। कोर्ट ने सैंपल देने का निर्देश दिया। पर नवरुणा के माता-पिता कोर्ट के आदेश के खिलाफ पुनर्विचार अपील में चले गये। इस बीच तीन बार पुलिस मैत्री चक्रवर्ती और अतुल्य चक्रवर्ती का ब्लड सैंपल लेने गयी। हर बार पुलिस को खाली हाथ लौटना पड़ा। वह कहते हैं कि पुलिस पहले कंकाल मामले पर फॉरेंसिक रिपोर्ट दे।

अब सवाल उठ रहा है कि सब कुछ के बावजूद नवरुणा के माता-पिता ब्लड सैंपल देने से क्यों इंकार कर रहे हैं? पुलिस का संकेत खुद अतुल्य चक्रवर्ती ही जाहिर कर देते हैं। उनका कहना है कि पुलिस हमें फंसाना चाहती है। वह अपनी नाकामी पर चादर डालना चाहती है।




1 comment:

  1. I have read the whole post and hope this post will work as an eye-opener for all those who are enjoying "feel good" in Bihar or in any other states of the country. Certainly, CBI probe in the case of Navaruna is the only answer to all the questions asked above. It will reveal the deep rooted corruption of Bihar Government.

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